Wednesday, February 3, 2016

पेड़ की गुहार

पेड़ की गुहार 

आज सुबह सवेरे इक नया सच,

बगलें झांक रहा था।

एक अच्छा खासा पेड़

अपनी मौत ख़ुद ही मर गया ।

गाज गिरी भी तो कहाँ...!

इक नई नकोर, गाड़ी के उपर

पूरे का पूरा टान गिर गया।

जिधर देखो तरह तरह की बातें,

तरह तरह के किस्से,

मुद्दे से कोसों दूर, सब

अपनी डफली अपना राग

आलाप रहे थे।

सब को चिन्ता इस बात की थी

कार इंश्योरेंस है कि नहीं।

पेड़ के गिरे टान को 

माॅडल की भाँति सब

निहार रहे थे।

हर ऐंगल से हर पोज़ में, 

कैमरे की फ्लैश में

कैद हो रहे थे।

आवाज़ें कानों में यूँ पड़ रही थीं....

भई इसे छूना मत,

हिलाना मत,

यही तो सबसे बड़ा हथियार है

तस्वीरें ले लो साफ साफ

वाट्सऐप पर डाल दो...

अरे सीधे एजेंट को ही मिलेगी

इस सबूत को तो एजेंट भी नकार

नहीं सकता; वगैरह वगैरह।

किसी ने बिचारे पेड़ से नहीं पूछा...

भई तुम्हें चोट तो नहीं लगी।

अचानक यूँ कैसे गिर गए,

अभी तो हट्टे कट्टे दिखते थे। 

भीड़ छंटने लगी, इका दुका रह गए

पेड़ जहाँ से टूटा था, वहाँ मुआयना किया, 

जमीन को देखा , कहीं बंजर तो नहीं ,

हैरानी और अफसोस दोनों हुआ 

क्योंकि आसपास की सारी जमीन,

कंक्रीट स्लैब से ढकी थी।

जब किसी की सासों का गला दबाएँगे,

तो कितनी देर जीएगा।

सिसकते सिसकते , बिचारे ने दम तोड़ दिया।

जाते जाते वार्निंग भी दे गया...

ऐ धरती वासियों, अभी भी वक्त है

संभल जाओ,

हमें जीने दो, खुले आकाश की फिजाओं में, 

हमें लहराने दो,

अपने गीत गुनगुनाने दो,

सूरज की रौशनी, मिट्टी , हवा, पानी

हमारी लाइफलाइन है,

उसकी रहमत हमसे ना छीनें। 

ऐसा न हो, कि

धरती ही सूख जाए,

फिर अपना रौष दिखाए।

तब त्राहि त्राहि करोगे,

और माफी भी नहीं मिलेगी।

फिर सूखा, बाढ़, सुनामी, फ्लैश फ्लड, कटरीना

इन सबसे, तुम बच नहीं पाओगे,

जो बोवोगे वही काटोगे।

अब ये तुम्हारे इख्तियार में है

इस जहाँ को जन्नत बनाकर,

उसका प्यार पाते हो

या दोज़ख बनाकर

खुद को गर्क करते हो।

Kiren Babal

4.10.2015

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