कल रात मुझे नींद नही आई।
कल रात मुझे नींद नही आई,
जाने क्यों, दिलोदिमाग पर
इक हलचल सी थी छाई ।
गली के नुक्कड़ पर
लम्बी हूक से रोता, इक कुता
मेरी नींद में खलल डाल रहा था।
रात अंधेरी उसपर बादलों की गडगडाहट
और खिड़की के पलों का यूँ बजाना सटासट ,
मेरे दिमाग पर हथौड़े चला रहे थे।
उपर से गरमी, कमरे की उमस
नींद की कोशिश में, बस
यूँ ही बदलती रही करवट।
रह रह कर एक अजीब सी, सरसराहट
मुझे चौंका देती,
झपकी लगती, फिर खुल जाती ।
पंखे की ओर बेजारी से देख सोचा ,
'लगता है ग्रीस खत्म हो गई है'
लीजिए, अब एक और खर्चा,
यानि कंगाली में आटा गीला!
उठकर सबसे पहले खिड़की बंद की,
थोड़ा पानी पिया, सुकून महसूस किया,
अभी बिस्तर पर लेटी ही थी,
कि फिर सरसराहट हुई,मैं एकदम से ठिठक गई!
'हे भगवान यह क्या हो रहा है ?
कहीं चोर तो नहीं घुस आए ?'
भाग कर कमरे का दरवाज़ा बंद किया
और कुंडी सट से चढ़ा दी।
हाँ - अब ठीक है!
थोड़ा पानी और पिया,
मन को ढाढ़स बंधाया
और बिस्तर पर जा बैठी।
अभी पाँच सात मिनट ही बीते थे,
कि फिर सरसराहट हुई
अब तो मैं बदहवास हो गई,
अपने आप में बुदबुदाने लगी
"जल तू जलाल तू
आई बला को टाल तू।"
इतने में एक और सरसराहट हुई
मेरी चीख निकल गई---मम्मी भू भू भूत
चादर से सिर मुँह ढक
आँखें कस कर भींच ली।
नींद को जैसे मुझपर दया आ गई
आँखों में कब डेरा जमाया
पता ही नहीं चला।
आँख खुली तो सवेरा हो चुका था।
तभी दूर साइरन बजा
गोया सुबह के आठ बजे गए
अब मुझे रात का वाक्या याद आया
खुद को छुआ और जिंदा पाया
यानि रात मुझे भूत का वहम हुआ?
तस्सली के लिए कमरे का मुआयना किया
भूत होता तो मिलता!
फिर जाने क्या सोच मैंने
पलंग के नीचे झांका
तभी फिर से सरसराहट हुई
और मैं ज़ोर से हंस पड़ी।
अच्छा तो आप हैं जनाब
जिसने मेरी रातों की नींद ख़राब की
आइए ज़रा बाहर आइए
आपकी खबर लूँ
और दो चपत भी लगाऊँ।
दोस्तों आप भी जान लीजिए
इस किस्से का क्लाइमेक्स
यह वो है जिसे आप रोज़
सवेरे चाय की चुस्कियों संग
बड़े प्यार से हाथों में थामते
जी हाँ---अख़बार
वह एक अख़बार का टुकड़ा ही था,
जो पंखे की हवा से जब तब हिलता,
सरसराहट की आवाज़ करता,
पर मेरे होश उड़ाने के लिए काफ़ी था।
अब सारा दिन कामकाज तो होता रहा,
कागज़ का भूत हंसाता भी रहा
अपनी नादानी पर रह रह कर
गुस्सा भी आता और हंसी भी।
आज भी जब याद करती हूँ
तो मेरी हंसी निकल जाती है।
# किरण बाबल