सर्द हवा
Friday, December 18, 2015
Tuesday, July 14, 2015
अखबारी दुनिया
सोचा ज़रा दुनिया देखूँ,
किस रंग रंगी है?
थोड़ा वाकिफ हो जाऊँ,
यही सोच, बहुत दिनों के बाद,
अखबार खोल, पढ़ने बैठ गई मैं।
अखबार क्या पढ़ा,
जिस्म और आत्मा ,
दोनों लहुलुहान हए।
किसी की ममता रोई,
बहन का धागा रोया,
बेटियाँ जो घर की आन होती है
वही रक्त रंजित,
अपनों से ही प्रताड़ित,
तार तार हुई।
दुनिया की सैर क्या, मैंने
हैवानियत का ही खुला तांडव पढ़ा।
जब रक्षक ही बने भक्षक,
तो किस दर जाए कोई।
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा गिरजा,
सबमें अस्मत लुटते दिखी।
ऐ खुदा,
ये धरती ,
तेरी बनाई हुई,
तेरी ही कायनात है।
सुनते हैं स्वर्ग नरक
सब यहीं है,
फिर दोज़ख ही मुझे
क्यों दिखाई पड़ी।
कहते हैं तेरे पास वो लाठी है
जब बरसती है, तो बेआवाज़ होती है।
तो क्यों नहीं चलाते, अपनी जादू की छड़ी ?
अमन -ओ-चैन सा तेरा यह जहाँ बन जाए।
फिर ना किसी माँ की कोख लजाए,
और न उसकी ममता रोए,
बहन और बेटी सर उठा के जिएँ।
तेरे ही तो हम सब बन्दे हैं,
ऐ खुदा चला दे, वो जादू की छड़ी,
ऊँच नीच की दीवार पट जाए,
भूख किसी तन को ना खाए
वहशत का फिर नंगा नाच ना हो
सर उठा के सब गर्व से कहें
कि ,खुदा के ही,
नेक बंदे हैं हम।
कि,खुदा के ही
नेक बंदे हैं हम।
Kiren Babal
14 .7.2015
~~~~~~चाँद~~~~~~
आज चाँद को मैंने कुछ अलग निगाहों से देखा,
बहुत प्यार आया उसपर, और मन मचल गया।
काश, कि अभी इसी वक्त, लपक कर उसे मुट्ठी में बंद कर लूँ,
और लुका -छिपी का खेल , खेलूँ ।
मुट्ठी खोलूं, बंद करूँ ...मुट्ठीु खोलूं , बंद करूँ ...
जुगनू सी उसकी रोशनी...जलती -बुझती ,जलती - बुझती,
मेरी मचलती तमन्नाओं की तरह,किलकारी भरती हुई।
आज चाँद को मैंने कुछ अलग निगाहों से देखा,
बहुत प्यार आया उसपर, और मन मचल गया।
उसकी बिखरी चांदनी, झिलमिल गोटे की तार सी लगी
और मेरे चंचल मन ने ख्वाब बुन डाला ।
काश कि गोटे-दार तार में , जादुई सीढ़ी बुनी होती,
और मैं लपककर चाँद तक पहुंच जाती।
नील आर्म स्ट्रांग ने तो कदम रखा था,
उसकी चांदी सी तश्तरी में सवार,
शीतल चांदनी में नौका विहार कर रही होती।
और बैकग्राउंड में यह गीत चल रहा होता. ..
चलो दिलदार चलो....चाँद के पार चलो.......................।
Kiren Babal
9.6.2015
Monday, July 13, 2015
नन्ही गिलहरी
कल लाल बत्ती पर,
लम्बी कतार की वजह
गाड़ी रू क गई मेरी
और इंजन बंद कर दिया ।
नज़रे उठा कर इधर उधर देखने लगी;
एक फर्लांग के अन्तराल पर खड़ेे दो वृक्षों को छूकर
बिजली की तार गुजर रही थी,
जिसपर मेरी नज़र जा टिकी थी,
बात ही कुछ ऐसी थी।
इक नन्ही गिलहरी,
किसी नटी से कम नहीं
पूँछ को उपर उठाए
नपे तुल ,
सधे हुए
कुछ काँपते,
लरजते
कदमों से
आगे बढ़ रही थी ।
और दिल थामे, मैं
एक टक उसे देख रही थी।
" ध्यान से. ..
देख के...
नन्ही गिलहरी "
मन का डर,
जुबाँ पर आ ही गया
कहीं बिचारी गिर ना पड़े
बिजली कीे तार से ।
वो गिलहरी,
थोड़ा भागती - थोड़ा रुकती
थोड़ा भागती -थोड़ा रूकती,
अपनी मंजिल की ओर
पूरी तन्मयता से
बढ़ी जा रही थी।
पेड़ को पास देख
इक लम्बी छलांग लगाकर
उपरी पतली टहनियों में झूल गई
और पत्तियों के झुरमुट में खो गई।
मुझे लगा जैसे मेरी सांस ही रूक गई
अचानक पीछे से जोर का हार्न बजा
मेरी तन्द्रा टूटी, हरी बत्ती हो चुकी थी,
झट से गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ गई।
मन में एक असीम, अनजानी
खुशी की लहर लिए हुए।
तभी रेडियो पर यह गीत बज उठा,
'हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती'।
Kiren Babal
17.6.2015
बारिश
बदरा तुम घिर आओ,
यूँ हमको ना तरसा,
जीवन की हरियाली है तुमसे,
महकी है धरती माँ तुझसे,
फिर वही फुहारें बरसाओ,
बदरा तुम घिर आओ।
बच्चों की किलकारी हो तुम,
बूढ़ों की जवानी हो तुम,
फिर बचपन की याद दिलाओ,
बदरा तुम घिर आओ ।
ऐसे बरसो छम छमा छम
थिरक उठें बस, सब के मन,
ना कोई रोके , ना कोई टोके,
जंगल थिरके, घर आंगन थिरके,
दे कर थाप--छमा छम, छम छम।
कारे बदरा तुम क्या जानो
सावन के झूले, तब तक ना भाए
संग तुम्हारा हो ना जब तक।
Kiren Babal
19.6.2015
मनमौजी मन
यह मन भी क्या बला है,
नित नए रंग बदलता है,
इक पल हंसता, इक पल रोता,
बच्चे सा मनमौजी है।
कभी लगाए चुप्पी ऐसी,
जंग लगे ताले की जकड़न जैसी,
मकड़े जैसा जाल बुने जभी,
उसी में उलझा फिरे तभी।
कभी बिदका घोड़ा बन जाए,
कुछ खिंचा खिंचा सा दिखलाए,
निठल्ला बन जब भी है रूठे ,
कोपभवन तभी भाए उसे।
खुद तो परेशान होता है,
औरों को भी सताता है,
इसका कोई इलाज बताए,
सीधी राह कोई इसे दिखाए।
कभी बने यह डायनामाइट,
परत दर परत सब खुल जाता है,
गुबार भी सारा बह जाता है,
तब कही चैन मिल पाता है।
मन में फिर सवाल आया,
मेरा मन कैसा है?
मैंने देखा परखा,
साधु शैतान, दोनों रू पों में पाया।
प्यार से थपकी दे,
मैंने उसे समझाया---
तुम बच्चे से मनमौजी, ही
मुझे अच्छे लगते हो।
सारी कलाबाजियां छोड़,
जो मुझे सुहाय,
बच्चे सा मनमौजी,
बस वहीं बन बसों, मेरे अंदर।
हंसो और हंसाओ,
बेकल जीवन में सबके,
हो सके तो , कोशिश करो, और
थोड़ा चैन दे जाओ।
Kiren Babal
12.7.2015.
Sunday, March 29, 2015
नर पिशाच
ऐ ज़िंदगी तूने दामन में
क्या छुपा रखा है ?
खुशियाँ तो नज़र आती नहीँ ,
तूने दर्द से आँचल भरा है l
रात अँधेरी बहुत ही अँधेरी . . .
गहरे घने बादलों ने
जम कर आँसु बहाए हैं ; और भीगी - भीगी पलकों में
सारे जा समाये हैं
ऐ ज़िंदगी , अब तो तू
कोई उमीद ना रख
इंसानों की इस दुनियाँ में
नर पिशाच कहाँ से आए हैं
जो इंसानियत को ही शर्माए है . . .
#kiren babal
30. 3. 2015
Saturday, March 28, 2015
मेरी जान
मेरी जान ( रू ह ) ने पूछा मुझसे
यूँ इतराते हुए . . .
" मेरे बग़ैर क्या रह पाओगी ? "
बड़े प्यार से अपनी जान को
गले लगाकर कहा मैंने . . . .
मैं हूँ . . . और मेरा वजूद ;
गरचे तुम चली जाओगी . . .
खुद - ब - खुद
मट्टी हो जाऊँगी l "
# Kiren Babal
29. 3. 2015
यूँ इतराते हुए . . .
" मेरे बग़ैर क्या रह पाओगी ? "
बड़े प्यार से अपनी जान को
गले लगाकर कहा मैंने . . . .
" मेरी जान ! तुम हो तो
मैं हूँ . . . और मेरा वजूद ;
गरचे तुम चली जाओगी . . .
खुद - ब - खुद
मट्टी हो जाऊँगी l "
# Kiren Babal
29. 3. 2015
Tuesday, March 24, 2015
दस्ताने - ए - मुस्कान
दस्ताने - ए - मुस्कान
सुनो भई सुनो . . . !
एक मज़ेदार सी दास्तां सुनाऊँ ;
मेरी हँसी ही लड़ पड़ी , मेरी अंखियॊं से l
हँसी ने मुँह तरेरा . . .
फ़िर कुछ मुँह बिचकाया ,
फ़िर समझाया . . .
तुम बड़ी अजीब हो भाई ;
बिन बादल बरसात
जब देखो , गंगा जमुना
बहाये रखती हो l
जाओ , थोड़ा डाक्टर को दिखाओ . . .
अपन इलाज कराओ ;
यूँ ही वक़्त बे वक़्त ,
सावन भादों ना बरसाओ l
हर चीज़ का एक वक़्त होता है l
ग़म में तो आँसू बहातीं हो ,
मेरी हंसी पर क्यों रोक लगाती हो ?
जब जब खिलखिलाना चाहता हूँ
तुम अपनी आँख े छलका देती हो ?
मेरे हँसते हुए चेहरे को , तुम
रोनी सूरत में बदल देती हो l
कुछ तो शरम करो . . .
ज़रा अपनी हद में रहो !
# Kiren Babal
24. 3. 2015
Saturday, March 21, 2015
This is a tribute to my father on his fourth death anniversary .
Accidently called Ranchi toknow his welfare and learnt that despite ill health , he had gone to the bank to deposit some amount in my account . A reply (in Punjabi) to mild reprimand from a daughter. . . His last words
मेरी जान
ये थे वो आखिरी शब्द - -
"तँू ताँ मेरी जान ए
मेरे दिल विच वसदी येंl "
कुछ थके थके से
दर्द से भरे हुए l
मेरी आँखों से आँसू
बहे जा रहे थे ,
मगर आवाज़ मॆं लरज़ ना आऐ
हंस कर दिलासे दे रही थी - - - -
"आप ठीक हो जाओगे पापा
मगर आप बाहर क्यों गये
आराम करते ? "
उधर से थकी सी आवाज़ आई - - -
"मेरा जी कित्ता , पुत्तर जी
दस कुज गलत कित्ता ?
तूँ ताँ मेरी जान ए
मेरे दिल विच वसदी यें l
थोड़ा आराम करांं गा
ते ठीक हो जावांगा ! "
यॆ नहीँ मालूम था कि
आराम कि चिर निद्रा में सो जाएँगे ,
हमें अपनी यादों के सहारे छोड़ जाएँगे l
पर हर रोज़ रात को यह
अमर वेल सा गीत मेरे कानों में गूँजता है - - - -
"तूँ ताँ मेरी जान ए
मेरे दिल विच वसदी यें "
#Kiren Babal
2. 03. 2015
Accidently called Ranchi toknow his welfare and learnt that despite ill health , he had gone to the bank to deposit some amount in my account . A reply (in Punjabi) to mild reprimand from a daughter. . . His last words
मेरी जान
ये थे वो आखिरी शब्द - -
"तँू ताँ मेरी जान ए
मेरे दिल विच वसदी येंl "
कुछ थके थके से
दर्द से भरे हुए l
मेरी आँखों से आँसू
बहे जा रहे थे ,
मगर आवाज़ मॆं लरज़ ना आऐ
हंस कर दिलासे दे रही थी - - - -
"आप ठीक हो जाओगे पापा
मगर आप बाहर क्यों गये
आराम करते ? "
उधर से थकी सी आवाज़ आई - - -
"मेरा जी कित्ता , पुत्तर जी
दस कुज गलत कित्ता ?
तूँ ताँ मेरी जान ए
मेरे दिल विच वसदी यें l
थोड़ा आराम करांं गा
ते ठीक हो जावांगा ! "
यॆ नहीँ मालूम था कि
आराम कि चिर निद्रा में सो जाएँगे ,
हमें अपनी यादों के सहारे छोड़ जाएँगे l
पर हर रोज़ रात को यह
अमर वेल सा गीत मेरे कानों में गूँजता है - - - -
"तूँ ताँ मेरी जान ए
मेरे दिल विच वसदी यें "
#Kiren Babal
2. 03. 2015
मेरा वजूद
हर रात के बाद की
इक नई सुबह हूँ मैं l
हर बारिश के बाद की
नई सोंधी खुशबू हूँ मैं l
बंद आँखों में संजोए , हर ख्वाब
का तस्सवुर हूँ मैं l
आस्मां में लुत्फ उठाते परिन्दे
का पुरजोर जोश हूँ मैं l
हर रंजो ग़म से गुज़र कर
होठों पर बसी इक हँसी हूँ मैं l
तूफानों को चीर कर
आशा की नई किरण हूँ मैं l
छोटे छोटे लम्हों में
अपने हिस्से की ढूँढ़ती , खुशी हूँ मैं l
खुदा की बनाई इस कायनात में
खुदा के नूर का ही अंश हूँ मैं l
# Kiren Babal
20. 3. 2015
Subscribe to:
Posts (Atom)