Sunday, February 28, 2016

अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फसाने में

साउदा मोहम्मद रफ़ी जी की पहली पक्ति ,'अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फसाने मे' को लेकर मेरे कुछ ख्याल।

ंअपनी तो नींद उड़ गई तेरे फ़साने में

फिर भी गिला करते फिरते हो ज़माने में।


अपनी नींद उड़ गई तेरे फसाने में

अभी कदम रखा है, जिंदगी के सफर में

अभी से यह दाव पेंच हमें हराने में?

तेरा मुस्कुराना, यूँ मुड़ मुड़ के तकना

रूबरू होने पर अनजान सा दिखना

अजीब है अंदाजे बयाँ ,यूँ बताने में

ये पैंतरे अच्छे नहीं दस्तूर-ए-मुहब्बत में ।

#

अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फसाने में

अब और बाकि क्या बचा बताने में

ख्वाब सारे हवा हुए, पलक झपकने में

तुम्हीं कोई राह दिखाओ, इन्हें मनाने में ।

#

अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फसाने में

उड़ ही गई नींद जब, कुछ ऐसा तो करो

इक गरम प्याली चाय तो पिलाओ

कि मज़ा आ जाए, चुस्कियां लेकर पीने में ।

Kiren Babal



Friday, February 19, 2016

आइडेंटिटी

वो कैरम के खेल

पिट्ठू की दौड़

गिल्ली डंडे का शोर

लंगड़ी टांग का दौर

वो बचपन का आंगन

सब छोड़ आए हम ।

अनजाना शहर

अनजाने लोग

ना अब वो मस्तियाँ

किस्से कहानियाँ

तन्हा मैं यहाँ, 

जिंदगी की दौड़ में

आइडेंटिटी ढूंढते फिरते है

Kiren Babal

19.2 2016

Tuesday, February 16, 2016

दिवानगी

दिवानगी
इक नई सुबह का आगाज़
जैसे नए अंकुर का स्रजन,
सुनहली खिली धूप, सुबह की सैर
अठखेलियां करती ठंडी बयार
रोम रोम में समाया, इक नया उत्साह
स्वपनिल सी हो जैसे, इक नई आशा
काफी है मेरी रूह को दीवाना बनाने के लिए।
और मन दिवानगी की सब हदें पार कर
खुशी से नाच उठे, अपनी ही धुन में
इक मस्त मलंग की तरह।
Kiren Babal
10.1.2016

जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार से प्यार मिला

साहिर लुधियानवी जी के मशहूर गाने की पहली पंक्ति को लेकर हमारा काफिया मिलाओ चैलेंज...और मेरी अदना सी कोशिश।...................................(जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार से प्यार मिला)



जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार से प्यार मिला

तुम भूल गए, तो गम नही

खुशियाँ देखो हज़ारों हज़ार

जीवन सन्ध्या की अब बेला है

कैसा शिकवा और कैसा गिला ।

नई बहारें जब भी आएँगी

फिर बनाएँगे, आशियाँ नया ।



जाने वो कैसे लोग थे जिनको प्यार से प्यार मिला,

इधर उधर की छोड़ो यारो,

दिल के तार छेड़ो तो ज़रा,

भीतर को रूख करो भला

लौ को तेज़ कर देख तो सही

प्रेम प्याला छलक जाएगा

ये मेरा तुमसे दावा रहा।



जाने वो कैसे लोग थे जिनके, प्यार से प्यार मिला

फिरते रहे हम मारे मारे

सितम भी न जाने कितने सहे

फ़लसफ़ा जबसे जाना यारों, 

रहमत पे उसकी यूँ शक ना कर

उसमें भी है कुछ छिपा भला।

इसीलिए अब खुश हैं यारों

तुम भी पढ़ लो यह पाठ ज़रा



जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार से प्यार मिला

इस चमन की खरोंचों को देखो ज़रा,

जिस्म-ओ-जान फिर तार तार हुआ,

दिल भी अपना टूट गया

चल फिर ढूँढें नई डगर जरा

अमन-ओ-चैन से रहें जहाँ,

फिर ना रहे कोई रंजो गम।

प्यार से मुझको यूँ  प्यार मिला ।





जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार से प्यार मिला

ऐ बन्दे यूँ गम ना कर

दिल को तू छोटा ना कर

ऋतुएं आनी जानी हैं

कब ठहरी हैं ये भला ।

कल की चिंता छोड़ ज़रा

आज को अपने जी ले ज़रा ।

Kiren Babal

12.2.2016

Tuesday, February 9, 2016

शेखचिल्ली सा कुछ हो जाए।

शेखचिल्ली सा कुछ हो जाए।

आओ कुछ गप शप हो जाए

महफिल में थोड़ी रौनक आ जाए।

तो फिर भईऐ , कुछ गरमा गरम हो जाए,

ज़ुबानों पे पहले कुछ ,चटखारा तो हो जाए।

चलो फिर गरमा गरम पकोड़े ही खाएं,

उन्हीं से अपनी महफिल सजाएँ ।

कुछ तुम सुनाओ, कुछ वो सुनाएँ

सुनाएँ क्या भईऐ , पेट में चूह हैंे कूदी मचाऐं।

तो भईऐ इतिश्री करो ना , इस घनी सरर्दी में, 

पकौडों की पेट पूजा का ही सेशन जमांऐ।

फिर यूँ चले गरमा गरम चर्चाओं का दौर, 

भई वाह, भई वाह ,गूँजे चहुँ ओर।

Kiren Babal

11.2.2016

Sunday, February 7, 2016

जेली का प्यार

Inspired by a Poet friend's poem ...here is my composition

यह वाक्या मेरी सहेली के घर का है

जब इत्तफाक से मैं उनके घर में मेहमान थी।

जेली का प्यार

हुआ यूँ कि मेरी सहेली बीमार हो गई,

पति महोदय हाल बेहाल हो गए, 

बोले,"जान! बताओ, क्या करूँ तुम्हारे लिए...

ठंडी ठंडी जेली बनाऊँ?"

बुखार से उनींदी मेरी दोस्त ने सिर हिला दिया।

पूरे जोश से पति महोदय, रसोई के अन्दर

जेली बनाने की तैयारी में जुट गए।

किचन के बाशिंदे हैरान, जिसने पानी का गिलास न उठाया हो

वो नायाब सा रसोई घर में कैसे घुस आया!

खैर जी, पतीला निकालने के चक्कर में कई और बरतन

खन खनखना कर जमीन पर धराशाई हुए ।

शुक्र है कि सब स्टील के थे!

आधा पतीला पानी भर, 

उबलने की तैयारी हो रही थी ।

जेली जो बनानी थी!

पैकेट को पढ़ने में सारा ध्यान जुटा था

चेहरे पर परेशानी के आलम...

तभी मैं किचन में पानी लेने गई,

देखती क्या हूँ, महोदय परेशान से, सिर खुजा रहे थे।

मुझे देखते ही बोले,"लगता है मुझे भी बुखार हो रहा है...

यह लो जेली का पैकेट...अपनी सहेली के लिए...ठंडी जेली बना दो..."

यह कहकर पैकेट मुझे थमा दिया

और खुद चले गए बेडरू म में।

सिर पर गीला तौलिया 

और मुहँ में थर्मामीटर डाले

पत्नी के बगल में परस गए।

हलचल हुई, पत्नी मुड़ी, बोली

क्या हुआ आपको?

जानू, लगता है मुझे भी बुखार हो गया है।

जेली अब तुम्हारी सहेली बना रही है।

पत्नी से रहा नहीं गया, मुहँ से निकल ही गया

वाह, वारी जाऊँ...आपके जेली वाले प्यार से।

बाकि के दिन जेली वाले प्यार के 

किस्से, चर्चे और ठहाकों में बीत गए।

Kiren Babal

7.10.2015

Friday, February 5, 2016

' साॅरी '

' साॅरी '

आज

आईना देखा,

तो आँखों में 

कई सवाल नज़र आए।

वो मन का सुकून,

सदा अंगसंग वाला,

आज कोसों दूर 

क्यों नज़र आया?

क्या है ,जो मन को ...

कचोट रहा है?

कुड़कुड़ा रहा है? 

परेशान कर रहा है?

सब धुआँ धुआँ सा है

यानि कुछ तो जल रहा है

पर क्या?

जी करता है ज़ोर से चिल्लाऊँ

सारा गुबार बस बह जाए।

जब सीधी सच्ची बातें

तोड़ मरोड़ दी जाती है, तो

मन को चोट लाज़मी है।

'साॅरी' भी क्या शब्द है;

नागवार मौकों को

नज़रअंदाज़ करने का

बहुत सही नुस्खा है।

जब 'साॅरी', 

लिप-सर्विस हो

तो सुकून, तो

कोसों दूर,

होगा ही ।

Kiren Babal

28.8.2015

कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या...


' परवीन शकीर', मशहूर शायरा की पहली दो लाईनों को लेकर, मेरे ख्याल।

( कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या ! )

कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या...

मैं जीऊँ  या मरूँ 

तुमको इससे क्या, 

मेरी इबादत में गर है दम,

रहमत होगी उसकी रज़ा । 

कट जाएँ मेरी सोच के पर , तुमको इससे क्या...

इरादे मेरे फौलादी हैं, 

मंज़िल रोक सकोगे क्या।

चाहे जितनी हंसी उड़ाओ, 

नाउम्मीदियों पे जश्न मनाओ

अमावस्या के बाद का चाँद, और 

खिली चांदनी में नहाई मैं ,

रोक सकोगे क्या ।


कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या...

सांसे,  परवरदिगार ने बक्शी, 

यह कुछ कम है क्या।

चंद लम्हे सुस्ता तो लूँ , 

तेरी जान पे क्यूँ बनी भला।

नया सवेरा संग अपने, 

नई रौशनी लायगा,

ए बन्दे यूँ इतराना क्या ।


कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या...

मेरी उड़ान में वो दम नहीं, 

तुम हंस लो ज़रा,

पल पल बदलती है ज़िन्दगी, 

ठहरा कुछ भी नही, 

नई सोच भी आएगी, 

विजयघोष की तरह,

इसी इंतज़ार में बैठे हैं,

 तुम ठहरो तो ज़रा।


कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या...

गिरों को और गिराना, 

तुम्हारी फितरत में है क्या, 

कुछ लोग और ही फितरत के होते हैं, थपकी देकर

आगे बढ़ना देते हैं सिखा ।

Kiren Babal

5.2.2016

Wednesday, February 3, 2016

पेड़ की गुहार

पेड़ की गुहार 

आज सुबह सवेरे इक नया सच,

बगलें झांक रहा था।

एक अच्छा खासा पेड़

अपनी मौत ख़ुद ही मर गया ।

गाज गिरी भी तो कहाँ...!

इक नई नकोर, गाड़ी के उपर

पूरे का पूरा टान गिर गया।

जिधर देखो तरह तरह की बातें,

तरह तरह के किस्से,

मुद्दे से कोसों दूर, सब

अपनी डफली अपना राग

आलाप रहे थे।

सब को चिन्ता इस बात की थी

कार इंश्योरेंस है कि नहीं।

पेड़ के गिरे टान को 

माॅडल की भाँति सब

निहार रहे थे।

हर ऐंगल से हर पोज़ में, 

कैमरे की फ्लैश में

कैद हो रहे थे।

आवाज़ें कानों में यूँ पड़ रही थीं....

भई इसे छूना मत,

हिलाना मत,

यही तो सबसे बड़ा हथियार है

तस्वीरें ले लो साफ साफ

वाट्सऐप पर डाल दो...

अरे सीधे एजेंट को ही मिलेगी

इस सबूत को तो एजेंट भी नकार

नहीं सकता; वगैरह वगैरह।

किसी ने बिचारे पेड़ से नहीं पूछा...

भई तुम्हें चोट तो नहीं लगी।

अचानक यूँ कैसे गिर गए,

अभी तो हट्टे कट्टे दिखते थे। 

भीड़ छंटने लगी, इका दुका रह गए

पेड़ जहाँ से टूटा था, वहाँ मुआयना किया, 

जमीन को देखा , कहीं बंजर तो नहीं ,

हैरानी और अफसोस दोनों हुआ 

क्योंकि आसपास की सारी जमीन,

कंक्रीट स्लैब से ढकी थी।

जब किसी की सासों का गला दबाएँगे,

तो कितनी देर जीएगा।

सिसकते सिसकते , बिचारे ने दम तोड़ दिया।

जाते जाते वार्निंग भी दे गया...

ऐ धरती वासियों, अभी भी वक्त है

संभल जाओ,

हमें जीने दो, खुले आकाश की फिजाओं में, 

हमें लहराने दो,

अपने गीत गुनगुनाने दो,

सूरज की रौशनी, मिट्टी , हवा, पानी

हमारी लाइफलाइन है,

उसकी रहमत हमसे ना छीनें। 

ऐसा न हो, कि

धरती ही सूख जाए,

फिर अपना रौष दिखाए।

तब त्राहि त्राहि करोगे,

और माफी भी नहीं मिलेगी।

फिर सूखा, बाढ़, सुनामी, फ्लैश फ्लड, कटरीना

इन सबसे, तुम बच नहीं पाओगे,

जो बोवोगे वही काटोगे।

अब ये तुम्हारे इख्तियार में है

इस जहाँ को जन्नत बनाकर,

उसका प्यार पाते हो

या दोज़ख बनाकर

खुद को गर्क करते हो।

Kiren Babal

4.10.2015

कल रात मैं सो नहीं पाई

कल रात मुझे नींद नही आई।

कल रात मुझे नींद नही आई,

जाने क्यों, दिलोदिमाग पर

इक हलचल सी थी छाई ।

गली के नुक्कड़ पर 

लम्बी हूक से रोता, इक कुता

मेरी नींद में खलल डाल रहा था।

रात अंधेरी उसपर बादलों की गडगडाहट

और खिड़की के पलों का यूँ बजाना सटासट ,

मेरे दिमाग पर हथौड़े चला रहे थे।

उपर से गरमी, कमरे की उमस

नींद की कोशिश में, बस

यूँ ही बदलती रही करवट।

रह रह कर एक अजीब सी, सरसराहट

मुझे चौंका देती,

झपकी लगती, फिर खुल जाती ।

पंखे की ओर बेजारी से देख सोचा ,

'लगता है ग्रीस खत्म हो गई है'

लीजिए, अब एक और खर्चा,

यानि कंगाली में आटा गीला!

उठकर सबसे पहले खिड़की बंद की, 

थोड़ा पानी पिया, सुकून महसूस किया,

अभी बिस्तर पर लेटी ही थी, 

कि फिर सरसराहट हुई,मैं एकदम से ठिठक गई!

'हे भगवान यह क्या हो रहा है ?

कहीं चोर तो नहीं घुस आए ?'

भाग कर कमरे का दरवाज़ा बंद किया 

और कुंडी सट से चढ़ा दी। 

हाँ - अब ठीक है!

थोड़ा पानी और पिया, 

मन को ढाढ़स बंधाया

और बिस्तर पर जा बैठी।

अभी पाँच सात मिनट ही बीते थे, 

कि फिर सरसराहट हुई

अब तो मैं बदहवास हो गई,

अपने आप में बुदबुदाने लगी

"जल तू जलाल तू

आई बला को टाल तू।"

इतने में एक और सरसराहट हुई

मेरी चीख निकल गई---मम्मी भू भू भूत 

चादर से सिर मुँह ढक 

आँखें कस कर भींच ली।

नींद को जैसे मुझपर दया आ गई

आँखों में कब डेरा जमाया 

पता ही नहीं चला।

आँख खुली तो सवेरा हो चुका था।

तभी दूर साइरन बजा

गोया सुबह के आठ बजे गए

अब मुझे रात का वाक्या याद आया

खुद को छुआ और जिंदा पाया

यानि रात मुझे भूत का वहम हुआ?

तस्सली के लिए कमरे का मुआयना किया

भूत होता तो मिलता!

फिर जाने क्या सोच मैंने

पलंग के नीचे झांका

तभी फिर से सरसराहट हुई

और मैं ज़ोर से हंस पड़ी।

अच्छा तो आप हैं जनाब

जिसने मेरी रातों की नींद ख़राब की

आइए ज़रा बाहर आइए

आपकी खबर लूँ

और दो चपत भी लगाऊँ।

दोस्तों आप भी जान लीजिए

इस किस्से का क्लाइमेक्स

यह वो है जिसे आप रोज़

सवेरे चाय की चुस्कियों संग

बड़े प्यार से हाथों में थामते 

जी हाँ---अख़बार

वह एक अख़बार का टुकड़ा ही था, 

जो पंखे की हवा से जब तब हिलता, 

सरसराहट की आवाज़ करता,

पर मेरे होश उड़ाने के लिए काफ़ी था।

अब सारा दिन कामकाज तो होता रहा,

कागज़ का भूत हंसाता भी रहा

अपनी नादानी पर रह रह कर

गुस्सा भी आता और हंसी भी।

आज भी जब याद करती हूँ

तो मेरी हंसी निकल जाती है।

# किरण बाबल

अन्नपूर्णा माँ

अन्नपूर्णा माँ

माँ सिर्फ माँ होती है, 

ना वो गोरी, ना वो काली, 

ना अमीर ना गरीब,

बस प्यार से भरपूर, 

इक अन्नपूर्णा होती है।

खुद चाहे पानी पीकर रह जाए, 

चाहे मलबा गारा सिर ढोए,

पर अपने बच्चे के लिए,

वह जो करती है, 

चाँद, सितारे तोड़ लाने से

कम नही होती ।

अब यहाँ देखिए, 

बच्चे का मन सेब

खाने को मचल गया।

माँ अपने लाडले को 

उससे वंचित भला

कैसे रहने देती?

फिर बच्चे को सेब दिला,

उसे खाता देख, 

उसका रोम रोम

वात्सल्य से भर जाता है, 

और यही आसीश

होठों से निकलती है

जियो मेरे लाल,

खुशियाँ देखो, हजारों हजार।

Kiren Babal

7th Aug'2015.

पल पल जिंदगी

पल पल जिंदगी

जीवन और मौत के बीच की डगर है 

जिंदगी।

इक पतली सी खुशनुमा रेशम सी डोर है

जिंदगी ।

नटी की मानिंद, झूलती झुलाती, तारतम्य बनाती है

जिंदगी।

इक पल हंसती, इक पल रोती है, गुनगुनाती सी है

जिंदगी ।

धीरे धीरे सरकती जाती है , फिसलती सी है

जिंदगी ।

कुछ छूट गए, कुछ पास आए ,ऐसे रू बरू होती है

जिंदगी ।

ये आवागमन का चलन है, सो चलती है

जिंदगी ।

कोई जीए, कोई मरे, मौसम बदलें , फिर भी धड़कती है

जिंदगी।

दिन के बाद रात, रात के बाद दिन, करवट बदलती है

जिंदगी ।

बस यूँ ही पलक झपकते अलविदा कह देती है

जिंदगी ।

Kiren Babal

2.9.2015

तेरे आने से

जिंदगी फिर गुनगुनाती है

तेरे आने पर।

कुछ ऐसा है एहसास

कि जुगनू जगमगा उठे हैं

गुफ्तगू ऐसी है...

जुबा हैँ चुप,खामोशी मुस्कराती है

तेरे आने से ।

किलकारियाँ, धमाचौकड़ियाँ ,

रसोई में कुकर की सीटियाँ

चारों ओर का बिखरापन

चहचहाते सब दास्ताँ सुनाते हैं

तेरे आने से।

आँखे पीछा करती हैं , लम्हा दर लम्हा

तुम भले ना देखो, भले ना कुछ कहो,

तुम्हारे चेहरे का सुकून, खुशगवारी

मेरी रूह पहचानती है,

खिलखिलाती है।

Kiren Babal

26.11.2015

परवान दोस्ती

एक मीठा एहसास है

दोस्ती।

बच्चे सी मासूमियत लिए होती है

दोस्ती।

अपने ही अन्दाज़ में खिलखिलाती है

दोस्ती।

ना कुछ माँगे, ना कुछ चाहे, सीढ़ी दर सीढ़ी परवान होती है

दोस्ती।

प्यार और विश्वास के चाह की चादर ओढ़े रखती है

दोस्ती।

सुबह की गर्म प्याली की चाय की चुस्की सी, पुरजोश होती है

दोस्ती।

आँखों में सुनहले सपने संजोती है

दोस्ती।

खुद से ज्यादा दोस्तों की खैरख्वाह रखती है

दोस्ती।

जो माँगे से हासिल हो झटपट, ऐसी शह तो नहीं है, 

दोस्ती।

बस माली की सींचन की तरह

आंगन में तुलसी के पौधे की तरह,

नभ में परिंदे की ऊड़ान की तरह

मेंहदी के गहरे होते रंग की तरह

इत्र के फैलते एहसास की तरह

लम्हा लम्हा परवान होते देखो

जोगिया रंग चढ़ ही जाएगा।

Kiren Babal

15.9.2015

कुछ भी बचा न कहने को

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

मन तो अभी भरा नहीं

ये चंचल आँखें बोलती गईं ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

पर शमा की क्या कहें

ये रात भर पिघलती रही ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

गज़ल सी है यह जिंदगी

मैं मस्त मलंग सी गा रही ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

इस दिल में प्यार बेशुमार है

कुछ बूंदे तुम्हें उधार ही सही ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

पैगाम तो सारे चले गए

इंतजार में आँखें बिछी रहीं ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

वो दर्द भी क्या दर्द है

जिसने रूह को छुआ नहीं ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

चल ए मेरे मनमौजी मन

राहें चमन हैं और भी ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

ऐ साकी पिला दे और मुझे

इक पैगाम मुहब्बत के नाम सही।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

वो सलाम जो झुक कर किया मैंने

वो मस्काराहट उफ्फ, किसी जन्नत से कम नहीं ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

उन इशारों की मैं क्या कहूँ

धड़क के दिल धड़का गई ।

खिली धूप


हम जो हैं, जैसे हैं, खुश हैं, 

अपने दयार में।

पर दिलों पे नश्तर अक्सर,

अपने ही चला जाते हैं।

फिर क्यूँ ना रहें बंद,

अपने ही दरो दीवार में।

ना नश्तर की चुभन हो,

ना लहू की रिसन हो।

ना कोई यह समझे,

कि टूट कर बिखर गए।

इसीलिए होठों पे हंसी ले

खिली धूप से आ गए हम

दुनिया के बाज़ार में ।

Kiren Babal

2.8.2015

घर इनका पर सड़क किनारे

घर इनका पर सड़क किनारे।

नन्हे नन्हें हाथों से

बालू थाप थाप कर, मज़े से

घरौंदा बनाते , खेल खेल में।

फिर पैरों से कूद कूद कर

खुद ही उसे फ़ना करते हैं।

नन्ही तालियाँ , किलकारियाँ

नहीं जानती बनाना , गिराना।

बालू संग खेलते , बढ़ते बच्चे

घर इनका पर सड़क किनारे।

बच्चे तो हैं इसी जहाँ के

घर इनका पर सड़क किनारे

माँ ने यहीं बिठाया है।

चोट लगी जो माथे पर

चिंता नहीं है , पर कोई।

मट्टी इनकी, मलहम पट्टी,

फौलादी से ये बच्चे हैं।

गौर से देखो दुनिया वालों

ये बच्चे राम की गिलहरी सरीखे हैं

माँ बच्चों से खेल खिलाती, बालू भरवाती

तसले भर कर बालू ले जाती

घरौंदे बनवाती फिर तसले भरवाती

साथ में उनका मनोबल जगाती

सिर्फ एक माँ ही करने में सक्षम है।

कैसे कह दे , उसका लाल, पैदाईश मजदूर है।

यानि सरदी गरमी पतझड़ बरसात

सबसे जूझते, फिर भी खिलखिलाते

चोटें खाते, पर जाने अनजाने , हर इमारत में

नन्हे हाथों से ,अपने हिस्से की मेहनत कर

इमारते नई बनाते हैं, फौलादी से ये बच्चे

पैदाईशी कामगार से , भोले बच्चे

बालू संग खेलते , बढ़ते बच्चे

घर इनका पर सड़क किनारे।

Kiren Babal

1.11.2015

जुगाली

एक व्यंग्य कविताओं की बौछार पर,जब चाहते हुए भी सब पढ़ नहीं पाते।

जुगाली

भई , क्या रफ्तार है

चहुँ ओर कविताओं की बौछार है

ज़रा थम जाओ,

कोई होड़ लगी है क्या?

जो ऐसी भागम भाग है!

चाहने वालों का बुरा हाल है

बस पढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ

हम भी कैसे श्रोता हैं, सभी लड्डुओं को

खाते खाते, अपच के शिकार हैं ।

भई जरा जुगाली तो करने दो

काव्य रस का पान तो करने दो

जब तक कविता मन में ना बसे

उसे जीवन वरदान कैसे मिले ?

कवि का लेखन, श्रोताओं का मंथन,

दोनों का तालमेल, प्रेमी प्रेमिका समान है।

दोनो साथ साथ हैं तो अमरप्रेम है....

रफतार में बेमेल ,कविताओं की अमावस है,

जैसे चार दिन की चाँदनी और फिर अँधेरी रात हो ।

कविता को जीना है,तो

श्रोताओं के मन में घर बनाना है

लिख कर , किसी कोनें में सरक जाए,

तो एक बंद पुलिंदे समान हैं।

मगर श्रोता तो फिर श्रोता हैं

मुड़ के फिर वहीं आते हैं

डूबते हैं , उभरते हैं, पिछड़ते हैं

फिर कविता के संग हो लेते हैं ।

Kiren Babal

30.9.2015

चिंगारियां

राख के ढेर से उठी चिंगारियां, भी 

                                           शांती के पैगाम दे जाते हैं।

धुंध का गीलापन भी,

उम्मीद का स्पंदन दे जाता है।

सर्द आहों में भी, अमन-ओ-चैन

की ख्वाहिशें सांस लेती है।

ना - उम्मीदी, कितनी गहरी क्यूँ न हो

तुम्हारे होठों की हंसी, पैगाम-ए-मुहब्बत दे जाते हैं।

Kiren Babal

24.12.2015