' साॅरी '
आज
आईना देखा,
तो आँखों में
कई सवाल नज़र आए।
वो मन का सुकून,
सदा अंगसंग वाला,
आज कोसों दूर
क्यों नज़र आया?
क्या है ,जो मन को ...
कचोट रहा है?
कुड़कुड़ा रहा है?
परेशान कर रहा है?
सब धुआँ धुआँ सा है
यानि कुछ तो जल रहा है
पर क्या?
जी करता है ज़ोर से चिल्लाऊँ
सारा गुबार बस बह जाए।
जब सीधी सच्ची बातें
तोड़ मरोड़ दी जाती है, तो
मन को चोट लाज़मी है।
'साॅरी' भी क्या शब्द है;
नागवार मौकों को
नज़रअंदाज़ करने का
बहुत सही नुस्खा है।
जब 'साॅरी',
लिप-सर्विस हो
तो सुकून, तो
कोसों दूर,
होगा ही ।
Kiren Babal
28.8.2015
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