एक मीठा एहसास है
दोस्ती।
बच्चे सी मासूमियत लिए होती है
दोस्ती।
अपने ही अन्दाज़ में खिलखिलाती है
दोस्ती।
ना कुछ माँगे, ना कुछ चाहे, सीढ़ी दर सीढ़ी परवान होती है
दोस्ती।
प्यार और विश्वास के चाह की चादर ओढ़े रखती है
दोस्ती।
सुबह की गर्म प्याली की चाय की चुस्की सी, पुरजोश होती है
दोस्ती।
आँखों में सुनहले सपने संजोती है
दोस्ती।
खुद से ज्यादा दोस्तों की खैरख्वाह रखती है
दोस्ती।
जो माँगे से हासिल हो झटपट, ऐसी शह तो नहीं है,
दोस्ती।
बस माली की सींचन की तरह
आंगन में तुलसी के पौधे की तरह,
नभ में परिंदे की ऊड़ान की तरह
मेंहदी के गहरे होते रंग की तरह
इत्र के फैलते एहसास की तरह
लम्हा लम्हा परवान होते देखो
जोगिया रंग चढ़ ही जाएगा।
Kiren Babal
15.9.2015
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