Wednesday, February 3, 2016

कुछ भी बचा न कहने को

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

मन तो अभी भरा नहीं

ये चंचल आँखें बोलती गईं ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

पर शमा की क्या कहें

ये रात भर पिघलती रही ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

गज़ल सी है यह जिंदगी

मैं मस्त मलंग सी गा रही ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

इस दिल में प्यार बेशुमार है

कुछ बूंदे तुम्हें उधार ही सही ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

पैगाम तो सारे चले गए

इंतजार में आँखें बिछी रहीं ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

वो दर्द भी क्या दर्द है

जिसने रूह को छुआ नहीं ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

चल ए मेरे मनमौजी मन

राहें चमन हैं और भी ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

ऐ साकी पिला दे और मुझे

इक पैगाम मुहब्बत के नाम सही।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

वो सलाम जो झुक कर किया मैंने

वो मस्काराहट उफ्फ, किसी जन्नत से कम नहीं ।

कुछ भी बचा न कहने को

हर बात हो गई

उन इशारों की मैं क्या कहूँ

धड़क के दिल धड़का गई ।

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