कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
मन तो अभी भरा नहीं
ये चंचल आँखें बोलती गईं ।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
पर शमा की क्या कहें
ये रात भर पिघलती रही ।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
गज़ल सी है यह जिंदगी
मैं मस्त मलंग सी गा रही ।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
इस दिल में प्यार बेशुमार है
कुछ बूंदे तुम्हें उधार ही सही ।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
पैगाम तो सारे चले गए
इंतजार में आँखें बिछी रहीं ।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
वो दर्द भी क्या दर्द है
जिसने रूह को छुआ नहीं ।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
चल ए मेरे मनमौजी मन
राहें चमन हैं और भी ।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
ऐ साकी पिला दे और मुझे
इक पैगाम मुहब्बत के नाम सही।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
वो सलाम जो झुक कर किया मैंने
वो मस्काराहट उफ्फ, किसी जन्नत से कम नहीं ।
कुछ भी बचा न कहने को
हर बात हो गई
उन इशारों की मैं क्या कहूँ
धड़क के दिल धड़का गई ।
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