Sunday, March 29, 2015

नर पिशाच

ऐ ज़िंदगी तूने दामन में 

क्या छुपा रखा है ? 

खुशियाँ तो नज़र आती नहीँ , 

तूने दर्द से आँचल भरा है l 

रात अँधेरी बहुत ही अँधेरी . . . 

गहरे घने बादलों ने 

जम कर आँसु बहाए हैं ; और भीगी - भीगी पलकों में 

सारे जा समाये हैं 

ऐ ज़िंदगी , अब तो तू 

कोई उमीद ना रख 

इंसानों की इस दुनियाँ में

नर पिशाच कहाँ से आए हैं

जो इंसानियत को ही शर्माए है . . . 

#kiren babal

30. 3. 2015

Saturday, March 28, 2015

मेरी जान

मेरी जान ( रू ह ) ने पूछा मुझसे

यूँ इतराते हुए . . .

" मेरे बग़ैर क्या रह पाओगी ? "

बड़े प्यार से अपनी जान को

गले लगाकर कहा मैंने . . . .

" मेरी जान ! तुम हो तो 

मैं हूँ . . . और मेरा वजूद ;

गरचे तुम चली जाओगी . . .

खुद - ब - खुद

मट्टी हो जाऊँगी l "

# Kiren Babal

29. 3. 2015

Tuesday, March 24, 2015

दस्ताने - ए - मुस्कान

दस्ताने - ए - मुस्कान 

सुनो भई सुनो . . . ! 

एक मज़ेदार सी दास्तां सुनाऊँ ; 

मेरी हँसी ही लड़ पड़ी , मेरी अंखियॊं से l 

हँसी ने मुँह तरेरा . . . 

फ़िर कुछ मुँह बिचकाया , 

फ़िर समझाया . . . 

तुम बड़ी अजीब हो भाई ; 

बिन बादल बरसात 

जब देखो , गंगा जमुना 

बहाये रखती हो l 

जाओ , थोड़ा डाक्टर को दिखाओ . . . 

अपन इलाज कराओ ; 

यूँ ही वक़्त बे वक़्त , 

सावन भादों ना बरसाओ l 

हर चीज़ का एक वक़्त होता है l 

ग़म में तो आँसू बहातीं हो , 

मेरी हंसी पर क्यों रोक लगाती हो ? 

जब जब खिलखिलाना चाहता हूँ 

तुम अपनी आँख े छलका देती हो ? 

मेरे हँसते हुए चेहरे को , तुम 

रोनी सूरत में बदल देती हो l 

कुछ तो शरम करो . . . 

ज़रा अपनी हद में रहो ! 

# Kiren Babal

24. 3. 2015

Saturday, March 21, 2015

मिट्टी और गारे के बने

इस घर को तुम

घर कह सकते हो

मैं नहीँ ll

मेरे ज़ेहन में तो

जज्बातों का बनना संवरना ही

सही मानों में घर कहलाता है ll

घर वो है जहाँ पे मिले

सुकून बेपनाह ll

रात गुजारने को तो

कई मुसाफिर खाने हैं 11

This is a tribute to my father on his fourth death anniversary .

Accidently called Ranchi toknow his welfare and learnt that despite ill health , he had gone to the bank to deposit some amount in my account . A reply (in Punjabi) to mild reprimand from a daughter. . . His last words

मेरी जान

ये थे वो आखिरी शब्द - -

"तँू ताँ मेरी जान ए

मेरे दिल विच वसदी येंl "

कुछ थके थके से

दर्द से भरे हुए l

मेरी आँखों से आँसू

बहे जा रहे थे ,

मगर आवाज़ मॆं लरज़ ना आऐ

हंस कर दिलासे दे रही थी - - - -

"आप ठीक हो जाओगे पापा

मगर आप बाहर क्यों गये

आराम करते ? "

उधर से थकी सी आवाज़ आई - - -

"मेरा जी कित्ता , पुत्तर जी

दस कुज गलत कित्ता ?

तूँ ताँ मेरी जान ए

मेरे दिल विच वसदी यें l

थोड़ा आराम करांं गा

ते ठीक हो जावांगा ! "

यॆ नहीँ मालूम था कि

आराम कि चिर निद्रा में सो जाएँगे ,

हमें अपनी यादों के सहारे छोड़ जाएँगे l

पर हर रोज़ रात को यह

अमर वेल सा गीत मेरे कानों में गूँजता है - - - -

"तूँ ताँ मेरी जान ए

मेरे दिल विच वसदी यें "

#Kiren Babal

2. 03. 2015


मेरा वजूद



हर रात के बाद की

इक नई सुबह हूँ मैं l 

हर बारिश के बाद की 

नई सोंधी खुशबू हूँ मैं l 

बंद आँखों में संजोए , हर ख्वाब 

का तस्सवुर हूँ मैं l 

आस्मां में लुत्फ उठाते परिन्दे 

का पुरजोर जोश हूँ मैं l 

हर रंजो ग़म से गुज़र कर 

होठों पर बसी इक हँसी हूँ मैं l 

तूफानों को चीर कर 

आशा की नई किरण हूँ मैं l 

छोटे छोटे लम्हों में 

अपने हिस्से की ढूँढ़ती , खुशी हूँ मैं l 

खुदा की बनाई इस कायनात में 

खुदा के नूर का ही अंश हूँ मैं l 

# Kiren Babal
20. 3. 2015