Tuesday, July 14, 2015

अखबारी दुनिया

सोचा ज़रा दुनिया देखूँ, 

किस रंग रंगी है?

थोड़ा वाकिफ हो जाऊँ,

यही सोच, बहुत दिनों के बाद,

अखबार खोल, पढ़ने बैठ गई मैं।

अखबार क्या पढ़ा, 

जिस्म और आत्मा ,

दोनों लहुलुहान हए।

किसी की ममता रोई,

बहन का धागा रोया,

बेटियाँ जो घर की आन होती है

वही रक्त रंजित,

अपनों से ही प्रताड़ित, 

तार तार हुई।

दुनिया की सैर क्या, मैंने

हैवानियत का ही खुला तांडव पढ़ा।

जब रक्षक ही बने भक्षक, 

तो किस दर जाए कोई।

मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा गिरजा,

सबमें अस्मत लुटते दिखी।

ऐ खुदा,

ये धरती ,

तेरी बनाई हुई,

तेरी ही कायनात है।

सुनते हैं स्वर्ग नरक 

सब यहीं है, 

फिर दोज़ख ही मुझे

क्यों दिखाई पड़ी।

कहते हैं तेरे पास वो लाठी है

जब बरसती है, तो बेआवाज़ होती है।

तो क्यों नहीं चलाते, अपनी जादू की छड़ी ?

अमन -ओ-चैन सा तेरा यह जहाँ बन जाए।

फिर ना किसी माँ की कोख लजाए, 

और न उसकी ममता रोए,

बहन और बेटी सर उठा के जिएँ।

तेरे ही तो हम सब बन्दे हैं, 

ऐ खुदा चला दे, वो जादू की छड़ी, 

ऊँच नीच की दीवार पट जाए,

भूख किसी तन को ना खाए

वहशत का फिर नंगा नाच ना हो

सर उठा के सब गर्व से कहें

कि ,खुदा के ही,

नेक बंदे हैं हम।

कि,खुदा के ही 

नेक बंदे हैं हम।

Kiren Babal

14 .7.2015

~~~~~~चाँद~~~~~~
आज चाँद को मैंने कुछ अलग निगाहों से देखा,
बहुत प्यार आया उसपर, और मन मचल गया।
काश, कि अभी इसी वक्त, लपक कर उसे मुट्ठी में बंद कर लूँ,
और लुका -छिपी का खेल , खेलूँ ।
मुट्ठी खोलूं, बंद करूँ ...मुट्ठीु खोलूं , बंद करूँ ...
जुगनू सी उसकी रोशनी...जलती -बुझती ,जलती - बुझती,
मेरी मचलती तमन्नाओं की तरह,किलकारी भरती हुई।
आज चाँद को मैंने कुछ अलग निगाहों से देखा,
बहुत प्यार आया उसपर, और मन मचल गया।
उसकी बिखरी चांदनी, झिलमिल गोटे की तार सी लगी
और मेरे चंचल मन ने ख्वाब बुन डाला ।
काश कि गोटे-दार तार में , जादुई सीढ़ी बुनी होती,
और मैं लपककर चाँद तक पहुंच जाती।
नील आर्म स्ट्रांग ने तो कदम रखा था,
उसकी चांदी सी तश्तरी में सवार,
शीतल चांदनी में नौका विहार कर रही होती।
और बैकग्राउंड में यह गीत चल रहा होता. ..
चलो दिलदार चलो....चाँद के पार चलो.......................।
Kiren Babal
9.6.2015

Monday, July 13, 2015

नन्ही गिलहरी


कल लाल बत्ती पर,
लम्बी कतार की वजह
गाड़ी रू क गई मेरी
और इंजन बंद कर दिया ।
नज़रे उठा कर इधर उधर देखने लगी;
एक फर्लांग के अन्तराल पर खड़ेे दो वृक्षों को छूकर
बिजली की तार गुजर रही थी,
जिसपर मेरी नज़र जा टिकी थी,
बात ही कुछ ऐसी थी।
इक नन्ही गिलहरी,
किसी नटी से कम नहीं
पूँछ को उपर उठाए
नपे तुल ,
सधे हुए
कुछ काँपते,
लरजते
कदमों से
आगे बढ़ रही थी ।
और दिल थामे, मैं
एक टक उसे देख रही थी।
" ध्यान से. ..
देख के...
नन्ही गिलहरी "
मन का डर,
जुबाँ पर आ ही गया
कहीं बिचारी गिर ना पड़े
बिजली कीे तार से ।
वो गिलहरी,
थोड़ा भागती - थोड़ा रुकती
थोड़ा भागती -थोड़ा रूकती,
अपनी मंजिल की ओर
पूरी तन्मयता से
बढ़ी जा रही थी।
पेड़ को पास देख
इक लम्बी छलांग लगाकर
उपरी पतली टहनियों में झूल गई
और पत्तियों के झुरमुट में खो गई।
मुझे लगा जैसे मेरी सांस ही रूक गई
अचानक पीछे से जोर का हार्न बजा
मेरी तन्द्रा टूटी, हरी बत्ती हो चुकी थी,
झट से गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ गई।
मन में एक असीम, अनजानी
खुशी की लहर लिए हुए।
तभी रेडियो पर यह गीत बज उठा,
'हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती'।
Kiren Babal
17.6.2015

बारिश


बदरा तुम घिर आओ,
यूँ हमको ना तरसा,
जीवन की हरियाली है तुमसे,
महकी है धरती माँ तुझसे,
फिर वही फुहारें बरसाओ,
बदरा तुम घिर आओ।
बच्चों की किलकारी हो तुम,
बूढ़ों की जवानी हो तुम,
फिर बचपन की याद दिलाओ,
बदरा तुम घिर आओ ।

ऐसे बरसो छम छमा छम
थिरक उठें बस, सब के मन,
ना कोई रोके , ना कोई टोके,
जंगल थिरके, घर आंगन थिरके,
दे कर थाप--छमा छम, छम छम।
कारे बदरा तुम क्या जानो
सावन के झूले, तब तक ना भाए
संग तुम्हारा हो ना जब तक।
Kiren Babal
19.6.2015

मनमौजी मन

यह मन भी क्या बला है,

नित नए रंग बदलता है,

इक पल हंसता, इक पल रोता,

बच्चे सा मनमौजी है।

कभी लगाए चुप्पी ऐसी,

जंग लगे ताले की जकड़न जैसी,

मकड़े जैसा जाल बुने जभी,

उसी में उलझा फिरे तभी।

कभी बिदका घोड़ा बन जाए,

कुछ खिंचा खिंचा सा दिखलाए,

निठल्ला बन जब भी है रूठे ,

कोपभवन तभी भाए उसे।

खुद तो परेशान होता है,

औरों को भी सताता है,

इसका कोई इलाज बताए,

सीधी राह कोई इसे दिखाए।

कभी बने यह डायनामाइट,

परत दर परत सब खुल जाता है,

गुबार भी सारा बह जाता है,

तब कही चैन मिल पाता है।

मन में फिर सवाल आया,

मेरा मन कैसा है?

मैंने देखा परखा,

साधु शैतान, दोनों रू पों में पाया।

प्यार से थपकी दे,

मैंने उसे समझाया---

तुम बच्चे से मनमौजी, ही

मुझे अच्छे लगते हो।

सारी कलाबाजियां छोड़,

जो मुझे सुहाय,

बच्चे सा मनमौजी,

बस वहीं बन बसों, मेरे अंदर।

हंसो और हंसाओ,

बेकल जीवन में सबके,

हो सके तो , कोशिश करो, और

थोड़ा चैन दे जाओ।

Kiren Babal

12.7.2015.