Tuesday, February 16, 2016

दिवानगी

दिवानगी
इक नई सुबह का आगाज़
जैसे नए अंकुर का स्रजन,
सुनहली खिली धूप, सुबह की सैर
अठखेलियां करती ठंडी बयार
रोम रोम में समाया, इक नया उत्साह
स्वपनिल सी हो जैसे, इक नई आशा
काफी है मेरी रूह को दीवाना बनाने के लिए।
और मन दिवानगी की सब हदें पार कर
खुशी से नाच उठे, अपनी ही धुन में
इक मस्त मलंग की तरह।
Kiren Babal
10.1.2016

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