Sunday, February 28, 2016

अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फसाने में

साउदा मोहम्मद रफ़ी जी की पहली पक्ति ,'अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फसाने मे' को लेकर मेरे कुछ ख्याल।

ंअपनी तो नींद उड़ गई तेरे फ़साने में

फिर भी गिला करते फिरते हो ज़माने में।


अपनी नींद उड़ गई तेरे फसाने में

अभी कदम रखा है, जिंदगी के सफर में

अभी से यह दाव पेंच हमें हराने में?

तेरा मुस्कुराना, यूँ मुड़ मुड़ के तकना

रूबरू होने पर अनजान सा दिखना

अजीब है अंदाजे बयाँ ,यूँ बताने में

ये पैंतरे अच्छे नहीं दस्तूर-ए-मुहब्बत में ।

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अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फसाने में

अब और बाकि क्या बचा बताने में

ख्वाब सारे हवा हुए, पलक झपकने में

तुम्हीं कोई राह दिखाओ, इन्हें मनाने में ।

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अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फसाने में

उड़ ही गई नींद जब, कुछ ऐसा तो करो

इक गरम प्याली चाय तो पिलाओ

कि मज़ा आ जाए, चुस्कियां लेकर पीने में ।

Kiren Babal



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